सवालो में घिरी महामारी 

photo by madhav ojha

तस्वीर जो खुद सच बया करेंगी। 

इस फोटो को देख कर यह बताये के इन में सबसे सुरक्षित कौन है ? और है तो क्यों और कैसे है ? इन्ही के जबाब में आप को कोरोना संकट की गहराई और हमारे साथ धोखा हो रहा है क्या इसके जबाब मिल जायेंगे। इसमें ppe किट पहना शक्स कोई डॉक्टर नहीं। जो स्वाब लेने के लिए किट पहना है। काले टीशर्ट वाला शख्स उस स्वाब कोजमा  करने वाला है।

दुनिया में महामारी के साये में जी रही है। पूरी मानव जाती एक दूसरे से डरने लगी है। इसकी वजह सिर्फ कोरोना है। जो नजरो से दिखाई नहीं देता। फिर भी ऐसा लगता है के हम उसकी चपेट में आ तो नहीं रहे। ऐसे में बहुत निचले स्तर पर नजर घूमते है ,तो यह एक घिनोना षड़यंत्र नजर आ रहा है। तब सवाल खड़ा होता है। आखिर कौन सबसे ज्यादा डरा हुवा है ? तब एक बात सामने आती है ,देश की स्वास्थ्य व्यवस्था खासकर हमारे डॉक्टर। और वो डॉक्टर जो सचमे कोरोना के मरीजों से कोसो दूर है। दूसरा नंबर अधूरे ज्ञान के महाज्ञानी मिडिया संपादक,पत्रकार इनका आता है। जिनकी डरपोक मानसिकताने देश में डर फ़ैलाने में कही कमी नहीं छोड़ी। यही सरकार चाहती थी. जिसे इस संकट को लेकर जनता को गुलाम बनाने का मौका मिल गया। इसी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। शिक्षा व्यवस्था तहसनहस हो गयी। सरकारी तंत्र बेलगाम हो गया। मिलकर पुरे देश में असमन्वय का वातावरण अनुभव किया जा रहा है।

गलतिया ही गलतिया 

सबसे पहली गलती विदेशो से आनेवाले लोगो को जहा है वही क्वारेंटीन किया जाता तो देश में तालाबंदी की जरुरत नहीं पड़ती। देर आये दुरुस्त आये। अब पछताए क्या हो….. जब देश में सिर्फ एकादुक्का मामले सामने आये उस समय कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की जगह लॉकडाउन लगा दिया।  बहुत बढ़िया दलील दी गयी थी जनता को सरकार को तयारी करने के लिए लॉक डाउन किया गया। ट्रेन बनायीं गई ,बड़े स्टेडियम में कॉट बिछाए गए। इसका कितना फायदा लोगो को हुवा ? कोई जबाब नहीं। मेरे ख्याल से केवल ठेकेदारों को इसका लाभ मिला जिन्हे मोठी रक्कम के किराये के बिल बने खुले आम जनता के पैसो की डकैती की गई। और आज भी की जा रही है।  देश के कई सारे मतलब लाखो संस्थात्मक क्वरेन्टीन सेंटरों में भर्ती लोगो को कमरे और कॉट के अलावा कोई सुविधा नहीं दी गई। इस बात को सरकार कोई सी क्यों न हो उसने ईमानदारी से यह कार्यवाही सार्वजनिक करनी चाहिए। इतनी ईमानदारी दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिखाई है। बहुत संवेदनशीलता से इस महामारी को दिल्ली सरकारने लिया है। उसीका नतीजा है केजरीवाल को लोग चाहने लगे है। इतनी संवेदनशीलता केंद्र और अन्य सरकार दिखती तो शायद हम लोग कोरोना को हरा चुके होते। 

आपसी असमन्वय बना मुसीबत। 

एक दिन के जनता कर्फ्यू के तुरंत बाद में आननफानन में लॉक डाउन की घोषणा कराकर जनता की मुश्किल बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोग भूखे हजारो किलोमीटर चल पड़े। इसमें पुलिस अत्यंत सवेंदनहीन दिखाई दी। मानो जिनके लिए दूसरे देश की सरकार ने आदेश पारित किये हो ,ऐसा बर्ताव कर उन्होंने हजारो मजबूरो की चमड़ी उधेड़ने में कोई कमी नहीं रखी। यह सब आपसी असमन्वय के परिणाम थे और आज भी लोग इसे भुगत रहे है। केंद्र की सरकार दुकाने खोलने को कहती रही। तो राज्य सरकार नहीं खोलने को लेकर अड़ बैठी। जहा दोनों ने मंजूरी दी वह कलेक्टर ने अपने अधिकार इस्तेमाल किये। कुल मिलकर इस सभी प्रक्रियामे लोगो को परेशानी में डालना ही कर्तव्यका पालन माना गया। इसके परिणाम सभी ने देखे है ,कई लोगो की जान भूखे चलने से हुयी। कई महिलाये सड़क के किनारे प्रसव हुयी। प्रवासी मजदूरों को लेकर न्यायपलिकाये भी छुपी साधे बैठी रही। मेरी देश की न्यायपालिका को बिनती है ,जो सरकार से पूछे क्या जनता देश के कानून और सरकार के आदेश नहीं मानती है। जिन्हे मनवाने के लिए अंग्रेजो के १८९७ वे के कानूनके साथ आपदा व्यवस्थापन कानून २००५ जनता पर लादा गया है। जिनकी वजह से आपके नोकरशहा जनताके मालिक बने है और नागरी अधिकारों का पूरी तरह से हनन हो रहा है। यही वजह है लोगो के लिए आज की तारीख में जीवन त्राहिमाम हो गया है। लोग कोरोना से कम और नोकरशहा को मनमानी करने की इजाजत या अधिकार देनेवाले कानून से डर रहे है।

गलत उपचार और तुलनासे हो रही है मौते 

इस महामारी के दौरान सबसे बड़ी गलती हम अपनी तुलना चीन की बजाय पश्चिमी राष्ट्रों से करते रहे।  जिनकी हमारी किसी बात में बराबरी नहीं। हमारी स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देने की जगह विदेशी अंग्रजी दवा पर भरोसा किया जा रहा है। जो बेकार साबित हो रहा है। मेरे पास एक ऐसा उदा,है ,जिसमे एक परिवार में दो लोग कोरोना पॉझिटिव्ह थे।एक को दो रेमडिसेविर दिए पर उसे बचा नहीं सके। दूसरे को पहले दिन ही डिस्चार्ज दिया था तब तक कोई  मेडिकल एमरजेंसी नहीं थी।जब के हमारे देश में आयुर्वेद जैसी प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति है। जो किसी भी बीमारिको जड़ से नष्ट करने की औकात रखती है।उसे दूर रखा गया। माना के व्हायरस नया है। तो चीन को कौनसा इलाज या दवा मिली जिसकी वजह से उनके सिर्फ कुछ हजार नागरिक ही मरे इस महामारी में।  हम लोग पहले दिन से हमारी तुलना चीन से करे तो बहुत कम समय के लिए देश के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन करावा कर आज बेखौफ हो जाते। आज भी हम इस महामारी के उपायों के लिए चीन से तुलना करेंगे  तो पता चलेगा के हमारे उपाय पूरी तरह असफल रहे है।  और हमारी सरकार ने देश को एक पीढ़ी पीछे लेजाकर खड़ा कर दिया है। जब ऑटोप्सी नहीं की गई तो मौत का कारण कैसे निश्चित किया जा रहा है ? इस इलाज के दौरान मरनेवालो के शवों को पैक कर के क्यों अंतिम संस्कार किये जा रहे है ? क्या मुर्दे छींक या खास सकते है ? जो कोरोना फैलेगा ? क्या ऐसा कोई कही सिद्ध हुवा है ?  मुझे विश्वास है मेरे जैसे हजारो लोगो की मन में उभरते इन सवालो के जबाब किसी के पास नहीं है।  क्यों के सच कुछ और ही है। बहुत सारे सवाल है ,जिनके जबाब आनेवाले दिनोमे सरकार को गंभीरतासे  देने होंगे क्यों के यह सवाल उन परिजनों के होंगे जिन्होंने अपना बाप ,भाई ,बिटिया ,माँ ,मासी ,भुवा ,मामा ,मामी,चाचा ,चाची ऐसे किसी न किसी रिश्ते को खोया है।  
सवाल बहुत आएंगे ,यही वजह है के यह महामारी बीमारी से कम और अव्यवस्था ने ज्यादा गंभीर कर दी है।   

By Admin

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